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लेखनी प्रतियोगिता -24-Nov-2023 🌹गाँव की परम्परा 🌹


सर्वप्रथम माँ शारदे को नमन,
तत्पश्चात "लेखनी" मंच को नमन,
मंच के सभी श्रेष्ठ सुधि जनों को नमन,
विषय:- 🌹गाँव की परम्परा🌹
कविता
दिनांक -- २४.११.२०२३
दिन -- शुक्रवार 
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सिर्फ यादें नहीं दिल में गाँव की,‌ सदैव दिल में मेरे गाँव बसते हैं,
कैसे भूलेंगे हम अपने गाँव को, जिसे अपनी मातृभूमि कहते हैं।

वो सुबह-सुबह बागों में जाना, अपने पेड़ों से  आम तोड़ खाना,
खेत-खलिहानों में रहँट चलाना, साथियों संग पोखरा में नहाना।

हमारे दादा जी  गाँव के प्रधान थे, गाँव की  परम्परा निभाते थे,
गाँव की  सारी  समस्याओं  को भी, चौपाल  में ही सुलझाते थे।

दादी  मेरी  बड़ी  मेहनती, ख़ुद गायों  का दूध  दुहकर लाती थी,
अपने हाथों से  मिट्टी के चूल्हे पर, पत्तों से ही खाना बनाती थी।

गाँव के हर घर में जैसे दूध और दही की जैसे नदियाँ बहती थी,
घी और मक्खन  का था बोलबाला, घर में खुशियाँ बरसती थी।

गाँव के पास ही  माध्यमिक विद्यालय, हम सभी पढ़ने जाते थे,
छुट्टी के समय  धमाचौकड़ी मचाते, पगडंडी पकड़ घर आते थे।

कोस भर की दूरी में पेठिया, जहाँ हम बस मेला  घुमने जाते थे,
झूला  झूलते, लकठो, जलेबी, रामदाना  लाई, मजे से खाते थे।

वहीं बगल में  नीमिया का पेड़, जहाँ पर  देवी माँ का मंदिर था,
वहीं  चार  फर्लांग  पर  बुढ़वा ‌ बाबा, भैरों नाथ का   मंदिर था।

अब भी हम होली, छठ, दूर्गापूजा मनाने अपने गांव ही जाते हैं,
दिल में हमारे  गांव ही बसते हैं पर हम अब  शहरी कहलाते हैं।


                  🙏🌷 मधुकर 🌷🙏

 (अनिल प्रसाद सिन्हा 'मधुकर', जमशेदपुर, झारखण्ड)
   (स्वरचित मौलिक रचना, सर्वाधिकार ©® सुरक्षित)

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2 Comments

सुन्दर और सजीव चित्रण

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Gunjan Kamal

24-Nov-2023 10:35 PM

👏🏻👌🏻

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